सारंगढ़ बंद पूरी तरह सफल रहा.......

Aug 21, 2024 - 15:39
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सारंगढ़ बंद पूरी तरह सफल रहा.......

सारंगढ़ । सुप्रीम कोर्ट द्वारा अजा व अजजा वर्ग के कोटे के अंदर कोटा व कोटे के कोटे के अंदर क्रीमीलेयर लागू करने के फैसले को पलटने संविधान संशोधन लाने भारत बंद किया गया। कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन में यह बात टंकित की गई है कि - हजारों वर्षों से अजा एवं अजजा वर्गों के साथ हुए भेद भाव, छुआछूत, अत्याचार की वजह से पिछड़ेपन के कारण इन वर्गों को समाज के मुख्यधारा में लाने के लिए भारत के संविधान निर्माता ने संविधान में अनुच्छेद 12,14 15, 16, 17, 46, 330, 332, 335, 341 एवं 342 इत्यादि का प्रावधान कर इन वर्गों को राज्य के सेवाओं में व शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण का अधिकार दिया है लेकिन इन अधिकारों को समय-समय पर न्यायालय के माध्यम से निष्प्रभावी करने की कोशिश की है । जिससे संविधान में 77 वां 81वां, 82 वां और 85 वा संविधान संशोधन हुए इसका नवीनतम उदाहरण मा उच्चतम न्यायालय के 7 न्यायधीशो की संवैधानिक पीठ के द्वारा 1 अगस्त 24 को दिया गया निर्णय है। इस के द्वारा अजा एवं अजजा के संवैधानिक प्रावधानों में हस्त क्षेप किया गया है। उपरोक्त निर्णय का अजा अजजा एवं संयुक्त समाज सारंगढ़, छग विरोध करता है।

विदित हो कि- अनुच्छेद 341 में राष्ट्रपति, सांसद के अलावा अजा की सूची में किसी तरह के परिवर्तन हेतु कोई भी अधिकृत नहीं है । अजा व अजजा संविधान के अनुच्छेद 341(2), 342(2) के तहत किसी अजा एवं अजजा को सूची में जोड़ा या उसे हटाया तभी जा सकता है । जब इस प्रक्रिया में राज्य सरकार ने पूर्ण अध्ययन कर आंकड़े के साथ अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को भेजती है ।संबंधित मंत्रालय राज्य सरकार के प्रस्ताव को भारत के रजिस्ट्रार जनरल गृह मंत्रालय को भेजता है। यदि सिफारिश आती है तो फिर इसको संबंधित आयोग के अनुशंसा के प्रस्ताव हेतु भेजा जाता है समस्त दस्तावेजों के साथ यदि आयोग भी अपनी सहमति देता है तो फिर मंत्रालय द्वारा कैबिनेट में रखा जाता है। यदि कहीं एक से भी असहमति आने पर प्रस्ताव आगे कार्रवाई नहीं होती है। कैबिनेट की अनुमति के बाद ही सूची में संशोधन के लिए संसद में बिल रखा जाता है संसद से पारित होने पर राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त होने के पश्चात भारत के राजपत्र में अधिसूचना जाने के बाद ही संशोधन प्रभावित होता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1 अगस्त को दिए गए फैसले अजा व अजजा वर्ग के कोटे के अंदर कोटा और कोटा के अंदर क्रीमीलेयर निर्धारित करने का अधिकार राज्यों को देने निर्णय पारित किया है ।इस निर्णय से देश भर के अजजा व अजा वर्ग प्रभावित हो रहे हैं। वास्तव में अज एवं अजजा वर्ग के भीतर उप वर्गीकरण करने का अधिकार राज्यों को नहीं है, क्योंकि आर्टिकल 341 (2) एवं 342 (2) यह अधिकार देश के सांसद को देता है और यही बात ई वी चिनैया मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 2005 में कहा था। पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में 1 अगस्त 2024 के निर्णय में 7 जजों में से एक जज जस्टिस बेला एम त्रिवेदी जी ने 6 जजों के फैसले से असहमति जताते हुए अपना निर्णय उपवर्गीकरण और क्रीमीलेयर के खिलाफ दी है। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने 9 जजों की संवैधानिक पीठ इंदिरा साहनी मामले 1992 में जस्टिस जीवन रेड्डी के कथन को उद्धृत करते हुए निर्णय लिखी है कि - क्रीमी लेयर टेस्ट केवल पिछड़े वर्ग तक सीमित है. अजा व जजा के मामले में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है ।

भविष्य में बगैर भरी रिक्त सीट सामान्य कोटे में अघोषित रूप से तब्दील हो जायेगी। एससी एसटी के भीतर ओबीसी की तरह क्रीमी लेयर लागू होने से यह वर्ग दो भागों में बंट जाएगा, जो मुख्यधारा की ओर थोड़ा आगे बढ़ रहे है, वे क्रिमि लेयर के दायरे में आ जाएंगे। यह वर्ग प्रतियोगिता में शामिल होने के पहले ही अघोषित रूप से बाहर हो जायेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देश के 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। अगले दिन अखबार में आया कि- पीएम एससी, एसटी के भीतर क्रीमी लेयर लागू नहीं करेंगे, लेकिन उप वर्गीकरण पर चुप्पी साधे है । यह केवल कोरा आश्वासन है। देशभर के एससी, एसटी वर्ग कोरे आश्वाशन में विश्वास नही रखते। यदि भारत सरकार वास्तव में एससी, एसटी हितैषी है तो तत्काल संसद सत्र बुलाकर पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले दिनांक 1 अगस्त 2024 के आए फैसले को पलटते हुए संविधान संशोधन लाए। एससी, एसटी वर्ग जो मुख्य धारा में अब तक नहीं जुड़ पाए है. उनके लिए राज्य के नीति निदेशक तत्व अनुच्छेद 38(2) में आर्थिक असमानताओं को दूर करने विशेष प्रावधान राज्यों को करने कहा है । इसी के परि पालन में एससी, एसटी के लिए 1980 से पृथक SCP, TSP बजट का प्रावधान किया गया है । लेकिन यह बजट केवल कागजों तक सीमित हो रही है, 1980 से 2024 तक लगभग 44 साल में इस बजट प्रावधान से अब तक कितने एससी, एसटी मुख्यधारा में जुडे, जो नहीं जुड़ पाए है वो आखिर क्यों नहीं जुड पाए। इसका सोशल आडिट सरकारे क्यों नहीं करती। जबकि नीति आयोग के दिशा निर्देश के अनुसार एससी, एसटी वर्ग के जनसंख्या के अनुपात में इन वर्गों के आर्थिक उत्थान के लिए जनसंख्या के अनुपात में बजट प्रावधानित कर लक्षित उद्देश्यों में खर्च किया जाए। लेकिन केंद्र और राज्य की सरकारें इस बजट का महज 1 से 2% राशि ही लक्षित उद्देश्यों में खर्च करती है बाकि - फंड राजनीतिक पार्टियों की चुनावी गारंटी पूरा करने में खर्च होती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को स्वमेव संज्ञान लेनी चाहिए।

ज्ञात हो कि - लोकसभा सत्र 2023 में पूछे गए सवाल में डॉक्टर जितेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री ने सदन में जानकारी देते हुए बताया कि भारत सरकार के 91 एडिशनल सेक्रेटरी में से एससी, एसटी वर्ग के 10 और ओबीसी वर्ग के 4 हैं, बाकी सब जनरल केटेगरी से है। वहीं 245 जॉइंट सेक्रेटरी में से एससी एसटी के 26 और ओबीसी के 29 अफसर है। ये स्थिति केंद्रीय सचिवालय की है। देश की उच्च न्यायालय एवं सुप्रीम कोर्ट की बैचों में अनुसूचित जाति जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व के लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा सत्र के दौरान ही बताया कि 2018 से जुलाई 2023 तक नियुक्त 604 हाई कोर्ट जजों में से 458 जज सामान्य श्रेणी के हैं, अनुसूचित जाति के 18 अनुसूचित जनजाति के 9 एवं पिछड़े वर्ग के 72 है। अर्थात भारत की जनसंख्या में लगभग 17% प्रतिनिधित्व करने वाली अनुसूचित जाति वर्ग की उच्च न्यायालयों के बैचों में महज 3% प्रतिनिधित्व है, वहीं देश की जनसंख्या में 8% भागीदारी करने वाली जनजाति वर्ग की महज 1% प्रतिशत प्रतिनिधित्व है। जबकि 1999 में गठित करिया मुंडा की रिपोर्ट में उच्च एवम उच्चतम न्यायालयों को अनुच्छेद 16/4) सहपवित अनुच्छेद 335 के तहत जजों की नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान करने अनुशंसा किया है, रिपोर्ट में कहा है कि 13 जजों की बेंच केशवानंद भारती मामले में माना कि न्यायलय भी राज्यों की श्रेणी में आते है, अत न्यायालयो में न्यायधीशों की नियुक्तियों में अनुसूचित जाति एवम जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करना चाहिए। यह रिपोर्ट सन 2000 में संसद में प्रस्तुत की गई, लेकिन अब तक लोकसभा में इस पर चर्चा हेतु नहीं लाया गया। यह बात स्पष्ट दर्शाता है कि सरकारें एसटी, एससी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के नाम पर अब तक उदासीनता बरती है. देश में केवल महज कागजों में खानापूर्ति चल रही है। वास्तव में अनुसूचित जाति एवम जनजाति वर्ग को प्रतिनिधित्य का अधिकार सदियों से वंचित रहने एवम् पिछड़ेपन के कारण मिली है, आर्थिक आधार पर नहीं। सरकारे संविधान सभा में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की वक्तव्य को अध्ययन कर सकती है। दूसरी बात संविधान के अनुच्छेद 341 एवम् 342 के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित जाति एवम जनजाति वर्ग अनुच्छेद 335 के तहत शासित होते है, जिसके अंतर्गत एससी, एसटी वर्गों के सभी शासकीय सेवाओं में दावे का प्रावधान है, लेकिन न्यायालय एवम सरकारें इन वर्गो को केवल अनुच्छेद 164) के तहत ही शासित समझाती है, जबकि अनुच्छेद 164) एवम् अनुच्छेद 335 यह सहपठित प्रावधान है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने आप में कानून है, इसे केवल संविधान संशोधन से ही बदला जा सकता है कोरे आश्वासन से नहीं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अमल 1 सितंबर से शुरू हो सकता है। कई राज्य पहले से ही वर्गीकरण करने को तैयार बैठी है। आंध्र प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र कर्नाटक बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु तेलंगाना, 2004 की गठबंधन केंद्रीय सरकार इत्यादि ने पहले उप वर्गीकरण करने कोशिश की थी, लेकिन ई वी चिनैया निर्णय ने इनके मनसुबो पर पानी फेर दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त के फैसले से ई बी चिनैया निर्णय को 7 जजों की बेंच ने पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 6178 फरवरी 2024 को लगातार 3 दिनों तक चली सुनवाई में भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल एवम विभिन्न राज्यों की ओर से शामिल अधिवक्ताओं ने उप वर्गीकरण का समर्थन किया है। इससे साफ मंशा जाहिर होती है कि केंद्रीय एवम् राज्यो की सरकारें अनुसूचित जाति एवम जनजाति वर्गों में फुट डालना चाहती है और संविधान में मिले आरक्षण को खत्म करना चाहती है।अत एव इन्ही सब मुद्दो को लेकर देशभर के अनुसूचित जनजाति एवम अनुसूचित जाति वर्ग 21 अगस्त भारत बंद का आह्वान किए है। अतः भारत सरकार का निम्न बिंदुओं पर ध्यान आकृष्ट कराना चाहते है । माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सिविल अपील संख्या 2317/2011 पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में आए निर्णय दिनांक 1 अगस्त 2024 के फैसले को पलटते हुए केंद्र सरकार तत्काल संविधान संशोधन लाए।

अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के पदोन्नति में आरक्षण मामले को अघोषित रूप से निष्प्रभावी करने वाली सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज बनाम भास्त संघ निर्णय 2006, जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता निर्णय 2018 एवं जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता द्वितीय निर्णय 2022 में आए फैसले एससी एसटी वर्ग के क्वांटिफिएबल डाटा एकत्र करने की पेचीदगियों को खत्म करने हेतु संविधान संशोधन लाया जाए, क्योंकि एससी, एसटी अनुच्छेद 335 के तहत शासित होते है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक शासकीय सेवा के पदों में एससी, एसटी के दावे का प्रावधान है। एम नागराज निर्णय 2006 के बाद एससी, एसटी के दावे का लगातार हनन केंद्र और राज्य की सरकारें कर रही है। छ.ग. राज्य में माननीय उच्च न्यायालय छ.ग.बिलासपुर वाद कमांक 9778/2019 में आए निर्णय दिनांक 16.04.2024 के परिपालन में शासन को 3 माह के भीतर नए पदोन्नति में आरक्षण नए नियम बनाने का निर्देश दिया था.छ.ग. सरकार अब तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाई है। छ.ग. सरकार अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों के लिए पदोन्नति में आरक्षण नियम तत्काल कियान्वित करें।

अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों को प्रतिनिधित्व का अधिकार एवं सुविधाएं उनके ऐतिहासिक पिछड़ेपन के कारण मिली है. ना की आर्थिक। इसके बावजूद एससी, एसटी वर्ग के विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप के लिए आय के प्रमाण की जरूरत पड़ती है। केंद्र सरकार द्वारा सन 2011 में एससी, एसटी वर्ग, ओबीसी वर्ग के लिए छात्रवृत्ति हेतु ढाई लाख आय सीमा में रखी गई है जिसका संशोधन अब तक नहीं किया गया है, इसके कारण अनुसूचित जाति जनजाति एवम पिछड़े वर्ग चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के बच्चों को भी छात्रवृत्ति का लाभ नहीं मिल पा रहा है, अतः इस मामले पर संज्ञान लेते हुए भारत सरकार अनुसूचित जाति जनजाति एवम पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों के लिए आय प्रमाण पत्र की आवश्यकता को खत्म करें। सन 2000 में लोकसभा में प्रस्तुत करिया मुंडा की रिपोर्ट न्यायपालिका में अनुसूचित जाति जनजाति वर्गों के लिए जजों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी अनुशंसा को लागू करें ओबीसी वर्गों में क्रिमिनल का प्रावधान बंद करने संबंधी संविधान संशोधन लाया जाए। नीति आयोग के निर्देशानुसार अनुसूचित जाति जनजाति वर्गों के लिए आवंटित पृथक बजट

अनुसूचित जाति कंपोनेंट प्लान एवं ट्राइबल सब प्लान की राशि का 100% लक्षित उद्देश्यों में खर्च करने हेतु कानून बनाया जाए एवं जो भी जिम्मेदार अधिकारी इस कानून को लागू करने में कोताही बरते, उनके ऊपर दंड प्रावधान करने संबंधी कानूनी प्रावधान किया जाए।

देश भर के अनुसूचित जन जाति बाहुल्य क्षेत्र में लागू पांचवी अनुसूची अंतर्गत पेसा कानून के दिशा निर्देशों का समुचित पालन किया जाए एवं इस निर्णय के परिपालन में कोताही बरतने वाले अधिकारियों के ऊपर दंड का प्रावधान किया जाए। 8 , 9 वीं अनुसूची को कानूनी समीक्षा के दायरे से बाहर रखें जाने संबंधी संविधान संशोधन लाया जाए। क्योंकि 1973 केशवनंद भारती मामले में सुप्रीमकोर्ट की 13 जजो की बेंच ने 9 वी अनुसूची कानून को न्यायिक समीक्षा के भीतर माना है।

सन 2021 से लंबित जाति गत जनगणना अविलंब किया जाए विशेष वर्गों को बैक डोर से एंट्री देने वाली लैटरल एंट्री केंद्र सरकार तत्काल खत्म करें एवं सरकारी संस्थाओं को बेचना बंद करे। साथ ही निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति जनजाति एवम पिछड़े वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु आरक्षण का प्रावधान करने संविधान संशोधन लाए।

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