"विकास" के नाम पर तमनार की कब्र खोदने आ रहा 'केलो स्टील एंड पावर' 15 मई को बरपाली में जनसुनवाई...

Apr 16, 2025 - 15:03
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"विकास" के नाम पर तमनार की कब्र खोदने आ रहा 'केलो स्टील एंड पावर' 15 मई को बरपाली में जनसुनवाई...

रायगढ़। क्या रायगढ़ को कब्रगाह में तब्दील करने की तैयारी पूरी हो चुकी है? क्या अब केलो नदी भी सिर्फ नाम भर रह जाएगी? और क्या तमनार को जीते जी मारने का एलान कर चुकी है सरकार? 15 मई 2025 को बरपाली गांव में होने वाली जनसुनवाई में एक और ‘विनाश का उद्योग’  'केलो स्टील एंड पावर प्राइवेट लिमिटेड'  के नाम पर सरकार और उद्योगपतियों की मिलीभगत जनता को एक बार फिर बर्बादी की खाई में धकेलने जा रही है।

फर्जी ईआईए, प्रायोजित जनसुनवाई और साजिश की स्क्रिप्ट तैयार है : सूत्रों के अनुसार, इस परियोजना के लिए जो पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट तैयार की गई है, वह झूठ और आंकड़ों की बाजीगरी पर आधारित है। रिपोर्ट में न तो वास्तविक प्रदूषण का ज़िक्र है, न ही प्रभावित गांवों की स्थिति का। जनसुनवाई सिर्फ एक औपचारिकता भर है एक तमाशा, जिसमें भीड़ खरीदी जाएगी, विरोध को दबाया जाएगा और तथ्यों को कुचला जाएगा।

अब न ज़मीन बचेगी, न ज़िंदगी : तमनार पहले ही कोल ब्लॉक और स्पंज आयरन प्लांट्स की मार से कराह रहा है। यहां की मिट्टी बंजर, पानी ज़हरीला और हवा सांस लेने लायक नहीं रही। ऐसे में ‘केलो स्टील एंड पावर’ का आगमन इस इलाके के लिए अंतिम कील साबित होगा। यह प्लांट सिर्फ उद्योग नहीं है। यह एक औद्योगिक युद्ध है जो केलो नदी, जंगल, खेत और इंसानी जीवन के खिलाफ छेड़ा गया है।

रायगढ़ अब विकास नहीं, विनाश की प्रयोगशाला : हरियाली को निगलते स्टील प्लांट्स, जल स्रोतों को चूसते कोल वाशरियां और सड़कों पर दौड़ते जानलेवा ओवरलोडेड ट्रक - यही है आज का रायगढ़। यहां हर विकास परियोजना एक विध्वंस परियोजना बन चुकी है। सरकार और पूंजीपतियों ने मिलकर रायगढ़ को एक ‘इंडस्ट्रियल शवगृह’ बना डाला है।

प्रदूषण के पहाड़ तले दबता जीवन : केलो नदी, जो इस इलाके की धमनियों जैसी थी, अब काले ज़हर में बदल चुकी है। भूगर्भ जलस्तर नीचे जा रहा है, कैंसर, श्वास रोग और चमड़ी की बीमारियां आम हो चुकी हैं। लेकिन सरकार को न स्वास्थ्य की चिंता है, न भविष्य की - उसे सिर्फ एक चीज़ से प्यार है कॉरपोरेट मुनाफा।

अब जनता को तय करना होगा चुप रहना है या ज़िंदा रहना है : 15 मई को बरपाली में होने वाली जनसुनवाई सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है।  यह जनता बनाम सरकार-उद्योग गठजोड़ की निर्णायक लड़ाई है। अगर आज आवाज़ नहीं उठी, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी नहीं, ज़हर बचेगा; खेत नहीं, राख के ढेर बचेगा; और जीवन नहीं, सिर्फ मौत की सांसें।

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