बस्तर में माओवादियों से लोहा ले रहे कमांडो ने यूपीएससी की परीक्षा में पाई सफलता

सीआरपीएफ के कमांडो राजू वाघ ने माओवादियों से लोहा लेते हुए यूपीएससी की परीक्षा में सफलता पाई है। उन्होंने 871वीं रैंक हासिल की है। राजू ने बस्तर में अपनी पदस्थापना के दौरान ग्रामीणों का भरोसा जीतने के लिए कैंप में ही पाठशाला खोली और बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उनकी इस पहल से ग्रामीणों का भरोसा जीतने में सुरक्षा बलों को सफलता मिली।
पत्नी के सहयोग से पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा में मिली सफलता।
माओवादियों के कॉरिडोर को हटाकर इलाके में बच्चों के लिए खोला स्कूल।
राजू वाघ का 2020 में CRPF असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर चयन हुआ था।
जगदलपुर। माओवादियों ने स्कूल तोड़े तो सुरक्षा कैंप को ही पाठशाला बनाकर बच्चों को अक्षर ज्ञान देने वाले केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के कमांडो राजू वाघ ने लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा 871वीं रैंक के साथ उत्तीर्ण कर ली है।
बस्तर के चांदामेटा गांव में अपनी पहली पदस्थापना के दौरान राजू ने जब यह देखा कि क्षेत्र के स्कूलों को माओवादियों ने ढहा दिया है और गांव में कोई स्कूल नहीं है। इसके बाद उन्होंने कैंप में ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, जिससे प्रेरित होकर बस्तर के कई सुरक्षा कैंपों में सुरक्षा बल ने बच्चों को शिक्षा देने की पहल शुरू की और इससे बस्तर के ग्रामीणों का भरोसा जीतने में सुरक्षा बल को सफलता मिली।
अभियान पर निकल रहे थे, तभी पता चला यूपीएससी में सिलेक्ट हो गए....
तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीमा पर कर्रेगुट्टा की पहाड़ी पर पिछले चार दिन से चल रहे हिड़मा समेत शीर्ष माओवादियों के विरुद्ध अब तक के सबसे बड़ा अभियान का हिस्सा कमांडो राजू भी हैं। उन्होंने बताया कि वे सोमवार अभियान के लिए निकल ही रहे थे, तभी उन्हें जानकारी मिली कि उनका चयन यूपीएससी में हुआ है।
अभी उनकी टुकड़ी मुठभेड़ स्थल से लगभग सात किमी की दूरी पर है। अपनी टीम के साथ चार दिन से जंगल में ही रुके हुए हैं। इस समय दोपहर का तापमान लगभग 42 डिग्री है और गर्म हवाएं भी चुनौतियां बढ़ा रही हैं। वे कहते हैं, इस समय कर्तव्य प्रथम है। अभियान से लौटने के बाद मित्रों और परिवार के साथ परीक्षा में चयन होने की खुशी मनाएंगे।
माओवादियों के कॉरिडोर को बंद कर खोला स्कूल....
2020 में सीआरपीएफ असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर चयन हुआ। 2021 में पहली पदस्थापना 80वीं बटालियन में होते ही बस्तर जिले के चांदामेटा में सीआरपीएफ की अग्रिम सुरक्षा चौकी (एफओबी) स्थापित करने की जिम्मेदारी मिली।
तुलसीडोंगरी की तलहटी में चांदामेटा गांव तब माओवादियों का सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। जहां ग्रामीणों का भरोसा जीतना बड़ी चुनौती थी। गांव में सामुदायिक पुलिसिंग के तहत ग्रामीणों को दवा, राशन, जरूरत का सामान उपलब्ध कराना शुरू किया और कैंप में ही पाठशाला खोलकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इससे ग्रामीणों के भरोसे के साथ दिल भी जीता।
आईएएस से प्रेरणा, पत्नी के साथ ने दिलाई सफलता...
राजू कहते हैं कि चांदामेटा में कैंप स्थापना के दौरान तत्कालीन कलेक्टर चंदन कुमार से मिले तो आईएएस बनकर देश सेवा में योगदान देने की प्रेरणा मिली। डेढ़ वर्ष पहले स्कूल की कनिष्ठ पूर्णिमा से उनका विवाह हुआ। जो वर्धा में मुख्य नगरपालिका अधिकारी हैं।
विवाह पश्चात वापस कर्तव्य पथ पर लौटे, पत्नी से अपने मन की बात कही। इस पर उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के लिए प्रोत्साहित किया। साथ देने खुद भी पढ़ाई शुरू की। परीक्षा में पूर्णिमा को सफलता नहीं मिली, पर राजू पहले ही प्रयास में सफल रहे। यद्यपि वे कहते हैं कि आईएएस बनने के लिए यह पर्याप्त रैंकिंग नहीं है, पर आगे भी प्रयास करते रहेंगे।
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