पटवारी अनिल के हेरफेर की कहानी बड़ी लम्बी है...
रायगढ़ - रायगढ़ तहसील में जब तक पटवारी अनिल की पदस्थापना थी तब तक कुछ लोगों ने भरपूर मलाई खाई है क्योंकि जमीन की हेराफेरी बिना पटवारी की साठगांठ के कर पाना संभव हो नहीं है।
पटवारी अनिल पर आखिर कब होगी कार्यवाही....?
रायगढ़ तहसील के अनेक हल्का में बतौर पटवारी रहते हुए कई कोटवारी भूमि की हेराफेरी की है जिससे शासन को करोड़ों का नुकसान हुआ है लेकिन पटवारी के चहेतों को करोड़ों का लाभ हुआ है क्योंकि इस कोटवारी भूमि पर अब कालोनाइजरों ने कालोनी काट कर किसी और के नाम की रजिस्ट्री भी करवा दी क्योंकि भूमि की हेराफेरी में पटवारी ने इस भूमि को कोटवारी नहीं बताया और ऐसा करके शासन को तो अंधेरे में रखा और उस व्यक्ति के साथ भी धोखा हुआ जिसने जानकारी के अभाव में रहते हुए इस जमीन को खरीदा और जब भी कभी कार्यवाही हुई तो उस व्यक्ति पर बेदखली की कार्यवाही होगी जिसने इस जमीन के बदले पैसे दिए है लेकिन उस पटवारी का क्या जिसने शासकीय दस्तावेजों में कुटरचना इस जमीन को किसी और के हवाले सिर्फ अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए कर दिया है।
सूत्रों की माने तो पटवारी अनिल ने पदस्थापना के दौरान अमलीभौना, जोरापाली, परसाद, गुडेली सहित अन्य जितने भी हलकों में पदस्थापना हुई वहां भारी गड़बड़ी की है। जब जिनके साथ धोखाधड़ी हो चुकी है वह बंद जुबान से यह सोच रहे है कि आखिर इस पटवारी पर कार्यवाही कब होगी....?
उच्च अधिकारियों का संरक्षण क्यों.....?
सूत्रों की माने तो जब भी पटवारी अनिल कोई हेराफेरी की है तब अपने उच्च अधिकारियों को अपने भरोसे में लेकर किया है क्योंकि जब कभी किसी जमीन के मामलों की जांच होगी तो अगर उच्च अधिकारियों की संलिप्तता नहीं होगी तो उस मामले पर तुरंत कार्यवाही होगी इस डर से पटवारी ने पूरी प्लानिंग कर ऐसी हेराफेरी को अंजाम दिया है।
एक सवाल यह उठता है कि इसे कर्मचारी को आखिर अधिकारी संरक्षण क्यों देते है अगर अधिकारी ऐसे लोगों को संरक्षण न दे तो पटवारी की ऐसे हिम्मत नहीं की वह किसी जमीन की हेराफेरी कर दे क्योंकि हर फाइल उच्च अधिकारियों के टेबल से ही होकर गुजरती है।
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