रायगढ़ लोकसभा सीट में साधारण कार्यकर्ता विरुद्ध राजघराना की लड़ाई
वर्षो की निष्क्रियता कांग्रेसी प्रत्याशी डॉ मेनका को पड़े़गा भारी ?
सारंगढ़ । देश में लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मियां तेज हैं , वहीं छतीसगढ़ के लोकसभा सीट में भाजपा ने पहले ही आम कार्यकर्ता से पार्टी के लिए संघर्षरत रहे राधेश्याम राठिया को अपना प्रत्याशी घोषित कर भाजपा के आम कार्यकर्ताओं को यें संदेश देने में कामयाब रही है कि - भाजपा में एक आम कार्यकर्ता भी लोकसभा उम्मीदवार बन सकता है । इसके बाद जनता, कांग्रेस आलाकामान से उम्मीद लगाये बैठी थी , वो भी एक ऐसे कार्यकर्ता को टिकट देगी जिससे पूरे लोकसभा क्षेत्र में वर्षो पार्टी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले कार्यकर्ताओं में अपार उत्साह का संचार हो सके और इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी बड़ा उलटफेर कर सके मगर काफी विचार मंथन के बाद कांग्रेस आलाकामान आम कार्यकर्ताओं के बजाय राजपरिवार का दामन थामना सही समझा । बहरहाल बड़े नेताओं के मन में क्या है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इस निर्णय से वर्षो कांग्रेस पार्टी का झंडा उठाने वाले कार्यकर्ताओं में निराशा है हालाँकि - आलाकमान के आदेश पर पार्टी हित में काम करना उनकी मजबूरी है और सच्चे योद्धा की तरह मैदान में डटें भी हैँ लेकिन वो सिर्फ पार्टी के नाम पर ही जनता से वोट मांग रहे हैँ ना कि - प्रत्याशी के दम पर । जबकि किसी भी पार्टी के जीत हार में बहुत बड़ा योगदान पार्टी के प्रत्याशी की होती है । ये बात जग जाहिर है , प्रत्याशी का चेहरा कार्यकर्ताओं के लिए जोश भरने का काम करती है लेकिन रायगढ़ लोकसभा में कांग्रेसियों की सबसे बड़ी कमी यहीं नज़र आ रही है।
नगर के ऐसे मूर्धन्य राजनेता जो राजनीतिक विश्लेषकों या शहर का चाणक्य कहलाते हैं जो कांग्रेस संगठन व रणनीति कारो को 10 मे 10 अंक दिया है लेकिन वर्षो से राज नीति मे कम सक्रिय चेहरे को लोकसभा का टिकट देकर ही विपक्षी पार्टी को एक बड़ा मैदान तोहफ़े मे दी है। विधान सभा चुनाव मे जब पुरा कांग्रेस एक होकर लड़ाई लड़ रही थी, तब वर्तमान सांसद प्रत्याशी के दर्शन दुर्लभ हो गये थे, लेकिन समय का चक्र विचित्र है । आज वही महलों की राजकुमारी जनता के दर तक पहुंच रही है। ये तो आने वाला वक्त ही बता पायेंगा कि - कार्यकर्ता और जनता का कितना आशीर्वाद कांग्रेस प्रत्याशी को देते हैँ ।
वहीं पार्टी से परे राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि - विधान सभा सारंगढ़ कांग्रेस ने 29 हजार मतों से विजय प्राप्त की थी लेकिन छग में सत्ता परिवर्तन के बाद दशा और दिशा दोनों बदल गयें है जिससे वें विश्लेषक यह कह रहें की कांग्रेस सारंगढ़ विधान सभा भी नहीं जीत पायेगी । क्योंकि प्रत्याशी कार्यकर्ताओं के चक्कर में पड़ गई है जो सिर्फ प्रत्याशी और महल की प्रशंसा में बात कर रहे हैं । भाजपा बूथ स्तर की लड़ाई में व्यस्त हैं ।
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