माता पार्वती ने की थी भगवान शिव की आराधना तब पाया था उन्हें पति के रुप मे :- पुज्या शीघ्रता त्रिपाठी...

Feb 21, 2024 - 21:24
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धुमधाम से संपन्न हुआ भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह श्रोतागण बने सांक्षी.....

कैपिटल छत्तीसगढ़ न्यूज नेटवर्क....

 संवाददाता :- दीपक गुप्ता....✍️

सूरजपुर :- जिले के भैयाथान विकासखंड अंतर्गत ग्राम बड़सरा मे चल रहे सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा के दुसरे दिन आज बड़े धुमधाम से भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ इस दौरान उनके विवाह की भब्य झांकी निकाली गई वही कथा के बीच बीच मे नाटकीय प्रसारण भी चलता रहा । जिसका कथा श्रोताओं ने भरपूर आनंद उठाया कथा व्यास पुज्या शीघ्रता त्रिपाठी ने भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का मार्मिक कथा का वर्णन करते हुऐ श्रोताओं को बताया की माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करने को इच्छुक थीं सभी देवता गण भी इसी मत के थे कि पर्वत राज कन्या पार्वती का विवाह शिव से होना चाहिए देवताओं ने कन्दर्प को पार्वती की मद्द करने के लिए भेजा लेकिन शिव ने उन्हें अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया अब पार्वती ने तो ठान लिया था कि वो विवाह करेंगी तो सिर्फ भोलेनाथ से शिव को अपना वर बनाने के लिए माता पार्वती ने बहुत कठोर तपस्या शुरू कर दी उनकी तपस्या के चलते सभी जगह हाहाकार मच गया. बड़े - बड़े पर्वतों की नींव डगमगाने लगी ।

 ये देख भोले बाबा ने अपनी आंख खोली और पार्वती से आह्वान किया कि वो किसी समृद्ध राजकुमार से शादी करें शिव ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक तपस्वी के साथ रहना आसान नहीं है बावजूद इसके माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया । भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के बारे में पुराणों का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने सबसे पहले माता सती से विवाह किया था भगवान शिव का यह विवाह बड़ी जटिल परिस्थितियों में हुआ था सती के पिता राजा दक्ष भगवान शिव से अपने पुत्री का विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर यह विवाह संपन्न हो गया एक दिन राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर दिया जिससे नाराज होकर माता सती ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर ली इस घटना के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए

उधर माता सती ने हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया था और पुनः भगवान शिव की आराधना कर उन्हें पति के रुप दोबारा पा लिया । विवाह का वर्णन करते हुऐ उन्होंने कथा श्रोताओं को आगे बताया कि लोकमान्‍यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में माता पार्वती से विवाह किया था जहां के लोग कहते हैं कि आज भी वहां अग्नि की अखंड ज्योति जल रही है वो ज्‍योति कभी बुझती नहीं हैं. बताया जाता है कि, शिव - पार्वती उसी ज्योति के सामने विवाह बंधन में बंधे थे इससे पहले देवताओं ने शिवजी का श्रृंगार किया और इसके बाद शिवजी का सुंदर दिव्य रूप रूप देख सभी प्रसन्न हुए फिर माता पार्वती और शिवजी का विवाह हुआ. इस तरह से शिव-पार्वती के विवाह में बाराती के रूप में देवतागण के साथ ही भूत-प्रेत और चुड़ैल आदि सभी शामिल हुए और इनकी मौजूदगी में ही शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ । वही भागवत कथा के दौरान पुरा गाँव भक्ति रंग भावविभोर हो गया है इस पुण्य कार्य के श्रोताओं ने आयोजन कर्ता को हृदय से धन्यवाद दिया है ।

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