राजमहल पर प्यार लुटाएगी या सबक सिखाएगी जनता ?

May 6, 2024 - 15:27
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राजमहल पर प्यार लुटाएगी या सबक सिखाएगी जनता ?

कांग्रेस आलाकमान से चुक या रणनीति का हिस्सा

सारंगढ़ । आदर्श आचार संहिता के मद्देनज़र 48 घंटा पहले चुनाव प्रचार थम गई है, ऐसे मे राजनीति के गढ़ सारंगढ़ में एक ही चर्चा जोरों पर है कि - क्या इस बार राजमहल को जनता पुनः प्यार लुटाएगी या सबक सिखाएगी ? राजनीति में कब कौन सा दांव चल जाए कहा नही जा सकता, कभी 2014 मे प्रत्याशी घोषित होने के बाद डॉ मेनका सिंह को वापस बैठाया गया था । वहीं अब बिना स्थानीय राजनैतिक सक्रियता के देश के सबसे बड़े लोकसभा चुनाव मे प्रत्याशी घोषित कर कांग्रेस ने ना सिर्फ जनता, राजनैतिक विश्लेषकों को बल्कि खुद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को चौंका दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी 1998 में रायगढ़ सीट जीतने वाले आखिरी कांग्रेस उम्मीदवार थे । उसके बाद कांग्रेस ने कई चेहरे बदले लेकिन नतीजा जस का तस रहा । जिस तरह कांग्रेस ने सारंगढ़ को जिला बनाया और जिस मेहनत से उत्तरी गनपत जांगड़े 5 साल सक्रिय रही उसके फल स्वरूप जनता ने ना सिर्फ उत्तरी जांगड़े को भरपुर आशीर्वाद दिया अपितु रिकॉर्ड मतों से जीताकर विधानसभा मे दुबारा पहुंचा कर सारंगढ़ का इतिहास बदल दिया । 

कांग्रेस अलाक़ामन से चुक या रणनीति का हिस्सा ?

विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के विपरीत जिस तरह उत्तरी गनपत जांगड़े ने अपनी क्रियाशीलता और लोकप्रियता के दम पर तूफानी जीत दर्ज की उसे शायद रायपुर और दिल्ली में बैठे बड़े नेताओं ने पार्टी की जीत समझ ली । दुसरी ओर शायद कांग्रेस आलाक़मान कार्यकर्ताओं से ज्यादा राज परिवार को जीत का फैक्टर मान रही होगी क्योंकि इसी परिवार से पूर्व मे केई विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री तक रह चुके है। इस बात मे भी कोई दो राय नही की आज भी उत्तरी जांगड़े और विधानसभा चुनाव के रणनीतिक सलाह कार दिन रात मेनका सिंह के समर्थन मे वोट मांग रहे हैँ, सभाएं कर रहे है , जनता जनार्दन को सारंगढ़ के नाम पर मेनका सिंह के नाम पर आशीर्वाद मांग रहे है । क्या सारंगढ़ की जनता का हृदय पिघल रहा है ? या पुराने जख्म आज भी गहरे हैँ ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा ? 

कभी राजमहल को बिठाया था पलकों पर

सारंगढ़िया हृदय से सोचते है, इनके लिए बस प्यार के दो बोल ही काफी हैँ, ऐसा हम नही कह रहे बल्कि इतिहास गवाह है। यही जनता राज महल पर वर्षो से प्यार लुटाते आ रही है। डॉ. मेनका देवी के पिता राजा नरेशचंद्र सिंह को जनता ने भरपुर प्यार दिया 1952 से 1968 तक अविभाजित मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किये थे । वे अविभाजित मध्य प्रदेश के एकमात्र मुख्यमंत्री थे जो आदिवासी समुदाय से थे। नरेशचंद्र सिंह को केवल 13 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया था। मेनका देवी की मां ललिता देवी 1969 में पुसौर विधानसभा सीट (रायगढ़ जिला) से निर्विरोध विधायक चुनी गईं। राजा नरेशचंद्र की पांच बेटियों में मेनका देवी तीसरी बेटी हैं। उनकी बेटी रजनीगंधा 1967 में रायगढ़ से सांसद रहीं और दूसरी बेटी पुष्पा देवी सिंह ने 1980, 1984 और 1991 में रायगढ़ लोकसभा सीट जीतीं। मेनका देवी की दूसरी बहन कमला देवी 18 वर्षों तक विधायक रहीं और अविभाजित मध्य प्रदेश में 15 सालों तक मंत्री रहीं। ये उदाहरण काफ़ी है राज परिवार के लिए जनता का प्यार और सम्मान साबित करने के लिए, लेकिन एका एक वही जनता अब सोशल मीडिया, व्हाट्सप ग्रुप, पनवाड़ी मे राजमहल को वोट नही करने की अपील कर रही है, जो की कांग्रेस के लिए चिंतनीय विषय है ?

25 साल की खाई कैसे पाटेंगे कार्यकर्ता ?

किसी भी पार्टी की जीत हार के दो मुख्य फैक्टर होते हैँ पहला प्रत्याशी का चेहरा और दूसरा पार्टी के कार्यकर्ता । सारंगढ़ मे कांग्रेसी कार्यकर्ता की कर्तव्यनिष्ठा पर कोई प्रश्नचिन्ह नही लगा सकता क्योंकि ये वही कार्यकर्ता हैँ जो रमन राज मे भी सारंगढ़ से उत्तरी जांगड़े को जीताकर अपना लोहा मनवाये थे, फिर नगरपालिका चुनाव मे कांग्रेस की सुनामी के सामने भाजपा ताश के पत्तों की भांती बिखर गई थी क्योंकि तब नगर पालिका अध्यक्ष का चेहरा सोनी अजय बंजारे थीं। लेकिन इस जंग मे कार्यकर्ता के पास एक ऐसा चेहरा सामने है जो ना तो खुद सारंगढ़ की राजनीति में कभी सक्रिय रहीं ना ही उनका कोई परिवार सक्रिय था। जी हां लोगों की माने तो लगभग 25 साल की चुनावी राजनीति में असक्रिय रहने वाले राज परिवार ने विगत किसी चुनाव मे कार्यकर्ताओं का भरपुर साथ नही दिया, डॉ मेनका सिंह उपाध्यक्ष, जिला कांग्रेस कमेटी, रायगढ़, धरमजयगढ़ के प्रभारी दम पद पर भी सुशोभित थीं। उनकी बेटी कुलिशा देवी, काग्रेस पार्टी में राष्ट्रीय संयुक्त सचिव, भायुकां (2020-22) भी रह चुकी है। कुलिशा देवी ने प्रदेश अध्यक्ष (छत्तीसगढ), जवाहर बाल मंच 22-23 समन्वयकरिसर्च छग पीसीसी का पद भी संभाला, लेकिन स्थानीय राजनीति मे असक्रिय रहीं। 

फिर भी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी के चेहरे के दम पर अपने जोशो जूनून की कांग्रेस को 2 विधानसभा, नगर पालिका चुनाव मे विजयी दिलाकर अपने समर्पण का बार बार सबूत पेश किये। लेकिन कार्यकर्ता भी बखूबी जानते हैँ की राजमहल का हरिहाट मेला मे विरोध,जनता का धरना मे बैठना, आम जनता का राजमहल मे प्रवेश निषेध, जपं गधाभांठा पहुंच मार्ग को तोड़ना, जैसे कई मसलें हैँ जिस खाई को वो पाटने मे लगे हैँ । ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा की जनता सब भूल कर एक बार फिर राजमहल पर प्यार लुटाएगी या पिछली गलतियों पर सबक सिखाएगी।

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