धान के बचाव हेतु इन दवाओं का उपयोग करें

Sep 22, 2024 - 15:48
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धान के बचाव हेतु इन दवाओं का उपयोग करें

सारंगढ़ । जिले में धान की फसल अब गभोट अवस्था या फूलआने की अवस्था में आना प्रारंभ हो गई है। इस समय सर्वाधिक कृषक धान में लगने वाले कीट बीमारियों की समस्या से जुझ रहे है, जिसकी रोकथाम हेतु कृषक कृषि विभाग के विकास खण्ड एवं जिला कार्यालय में बार-बार आ रहे है । ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों से समसमायिक चर्चा एवं क्षेत्र भ्रमण के दौरान कृषकों द्वारा कीट बीमारी एवं जंगली चूहों से फसल क्षति निवारण के लिए उपचार हेतु प्रश्न किये जा रहे है । धान में लगने वाली कीट व्याधियों की समस्या के निवारण हेतु कीटनाशक, पीड़कनाशी, फफूंदनाशक, जीवाणुनाशक के उचित प्रयोग हेतु सम समायिकी जानकारी प्रदान की जा रही है। जिसमें धान के मुख्य विनाशकारी कीट पीला तना छेदक, भूरा माहू, गंधीबग,शीटब्लाईट, ब्लास्ट, जीवाणू जनित झुलसा एवं जंगली चूहे द्वारा फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया जाता है। भूरा माहू कीट धान के पौधों से निरंतर रस एवं पोषकतत्व चूसता है। इसके अत्यधिक प्रकोप के कारण पौधा प्रारंभ में पीला एवं अंत में भूरा होकर नष्ट हो जाता है। प्रकोप होने पर धान के खेत में एक भूरे रंग का गोला कार धब्बा दिखाई देता है जिसे हाईपर बर्न कहते है । इसके निवारण हेतु पायमेट्राजीन 50% WG 120 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ या डाइनोटेफ्यूरॉन 20% एस.जी. 80 ग्राम मात्रा प्रति एकड या थायो मेथेक्जाम 25% डब्लू.जी. 40 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग कर सकते हैं।

तना छेदक कीट कल्ले निकलने की अवस्था में पौधों पर आक्रमण करता है । केन्द्रीय भागों को क्षति पहुंचाता है । परिणाम स्वरुप पौधा सूख जाता है, इस कीट के निवारण हेतु कार्टाप हाइड्रोक्लोराईड 50% एस. पी. 400 ग्राम प्रति एकड़ या बाईफेनथिन 10% ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ अथवा क्लोरानट्रेनिलीप्रोल 18.5% एस.पी. 60 मि.ली. प्रति एकड़ दवा का छिड़काव करें। शीटब्लाइट एवं ब्लास्ट रोग के प्रकोप से पत्तियां एवं तने में आंख के आकार के भूरे धब्बे एवं लंबी-लंबी धारियां बनती है जो बाद में सूख कर झुलस जाती है। जिसके निवारण हेतु ट्राईसायक्लाजोल 75% डब्लू.पी. एवं कार्बेडाजिम 200 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए। 

जीवाणु पत्ती झुलसा रोग में पौधों की नई अवस्था में नसों के बीज पारदर्शिता लिये हुए लंबी-लंबी धारियां पड़ जाती है। जो बाद में कत्थाई रंग ले लेती है। जिसके उपचार हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट टेट्रासाइक्लिन 120 ग्राम एवं साथ में कॉपर आक्सीक्लोराइड 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करते है इस रोग हेतु खेतों में पोटाश का उपयोग भी लाभप्रद होता है।

आजकल जंगली चूहों द्वारा फसलीय खेत को फसल की सभी अवस्थाओं में नुकसान पहुंचाया जा रहा है । चूहे फसलों को हानि पहुंचाने के साथ प्लेग,लेप्टोस्पायरोसिस नामक संक्रामक रोग भी फैलाते हैं । चूहों के पेशाब में लेप्टोसोरायसिस नामक जीवाणु होते हैं जो अनाज, दालों, सब्जियों तथा फलों के माध्यम से मनुष्यों में पहुंच जाता हैं। इसके अलावा यह रोग खेत में काम करने वाले किसानों में नमी व कीचड़ युक्त माहौल में चूहों के मूत्र करने से पहुंचकर बुखार के साथ लीवर व किडनी को भी प्रभावित करता है । चूहों में खाने, सुनने, स्वाद चखने तथा सुंघने की विशेष शक्ति के कारण इनका नियंत्रण करना बहुत ही कठिन होता है। खेतों में चूहों के प्राकृतिक नियंत्रण हेतु खेत के किनारे एवं मध्य में शिकारी पक्षियों के बैठने के लिए खम्भे लगाने चाहिए । रासायनिक नियंत्रक के रुप में जिंक फास्फेट चूहों के मारने के लिए कारगर विष है। इसके जहरीला लड्डू बनाने के लिए मक्का, चावल, गेहूं, चना का एक किलो आटा या बेसन या अनाज के दाने में 25 ग्राम जिंक फोस्फाइड विष, 20 ग्राम गुड़, 20 ग्राम सरसों का तेल मिलाकर विषाक्त 10 -10 ग्राम के लड्डु कागज में पुड़िया बनाकर चूहों के बिल में रखनी चाहिए। विषाक्त लड्डू प्रयोग करने से दो-तीन दिन पहले अनाज के दाने , आटे की सरसों के तेल मिलाकर बनाई गोलियां या पुड़िया रख कर चूहों को लुभाना चाहिए। इसके बाद ही विषाक्त लड्डू जिंदा बिलों में रखें। लड्डू बनाने के लिए कभी घर के बर्तनों का प्रयोग ना करें। विष मिला लड्डू व चूहे मार दवा बच्चों, पालतू पशुओं, जानवरों , पक्षियों की पहुंच से दूर रखें।

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