मेरे नईया मे बैठे हैं सीता राम गंगा मईया धीरे बहों - पं. रविन्द्र दुबे....

Dec 8, 2024 - 21:08
Dec 8, 2024 - 21:14
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कैपिटल छत्तीसगढ़ न्यूज नेटवर्क...

संवाददाता : - दीपक गुप्ता...✍️

सूरजपुर :- जिले के भैयाथान विकासखंड अंतर्गत ग्राम बड़सरा चल रहे 9 दिवसीय श्री राम कथा के छठवें दिन प्रातः 8:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक पाँच कुण्डीय महायज्ञ संपन्न हुआ यज्ञ हवन मे काफी संख्या मे ग्रामीण व माताओं - बहनों ने हवन पुर्णाहुति की माँ गायत्री के नाम हवन पुर्णाहुति लोग पीले वस्त्र पहने नजर आयें । हवन पुर्णाहुति के समापन के ततपश्चात दोपहर 3:00 बजे पुनः श्री राम कथा प्रारंभ हुई

कथा व्यास पं. रविन्द्र दुबे जी महाराज ने श्री राम कथा महोत्सव के छठवें दिन श्रोताओं को केवट प्रसंग व भरत श्री राम मिलाप का मार्मिक कथा सुनाया जिसे सुनकर श्रोताओं की आंखें नम हो गई । कथा व्यास ने बताया कि जब श्री राम , माता सीता , लक्ष्मण जी वन प्रस्थान के दौरान गंगा नदी के तट पर पहुंचे । और विनम्रतापूर्वक केवट से गंगा पार करने हेतू आग्रह किया तब नदी पार कराने से पहले केवट ने भगवान के पैर धोऐं व पुरे परिवार सहित चरणा अमृत का सेवन किया बाद इसके भगवान राम को केवट ने अपने गोद मे उठाकर अपने नाव मे बैठाया । कथा ब्यास ने आगे बताया कि केवट की नाव से गंगा पार करके भगवान ने केवट को उतराई देने का विचार किया। पर भगवान के पास केवट को कुछ देने के लिऐ नही था माता सीता जी ने अर्धागिनी स्वरूप को सार्थक करते हुए भगवान की मन की बात समझकर अपनी कर-मुद्रिका उतारकर उन्हें दे दी। भगवान ने उसे केवट को देने का प्रयास किया, किंतु केवट ने उसे न लेते हुए भगवान के चरणों को पकड़ लिऐं ।

और कहा प्रभू मैने तो केवल आपको अपने नाव से नदी पार कराया है पर आप तो सभी जीवन की नौका पार लगाते हैं अतः हे प्रभु आप मेरे सहित पुरे परिवार की जीवन नौका पार लगा दिजिएगा । इस तरह भगवान के श्रीचरणों की सेवा से केवट धन्य हो गया। भगवान ने उसके निस्वार्थ प्रेम को देखकर उसे दिव्य भक्ति का वरदान दिया तथा उसकी समस्त इच्छाऐं पुर्ण की । बाद इसके केवट ने भी भगवान राम के साथ वन जाने इच्छा प्रकट की और कहा कि प्रभु मै भी आपको वन मे मार्ग बताते हुए साथ चलुंगा पर भगवान राम ने नौका पार होने वाले लोगों की सेवा व उसके परिवार का भरण पोषण की जिम्मेदारी का बोध कराते हुऐ रोक दिया अपने जिम्मेदारी को समझते हुऐ केवट ने भगवान की बात मान ली ।

 तब भगवान राम ने केवट को वट (बर) बृक्ष का दुध लाने के लिऐ केवट से कहा वट बृक्ष के दुध से केवट ने भगवान राम और लक्ष्मण जी के बालों मे जटा बनाया और केवट पुनः अपने कर्म भूमि की ओर लौट गए जब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण जी को गंगा पार कराने के बाद सुमंत जी जब अयोध्या लौटे तब उनकी आखें नम थी हाथ नही चल रहे थे घोडें भी रो रहे थे पुरी अयोध्या नगरी विरान थी इधरचित्रकूट पर भगवान का आगमन हुआ। यहां से भील राज (निषाद) भगवान को प्रणाम करके अपने गृह के लिए वापस हुए। मार्ग में शोकातुर सुमंत जी को धैर्य देकर उन्होंने अवध भेजा। सुमंत द्वारा रामजी का वन गमन का समाचार सुनकर महाराज दशरथ ने प्राणों का त्याग कर दियें। कैकेयी का त्याग करके भरत मां कौशल्या के भवन में आए। माता कौशल्या ने भरत को पूर्ण वात्सल्य प्रदान किया व राम वनवास और दशरथ मरण की संपूर्ण घटना को सुनाया। भरत ने मां के सामने शपथ पूर्वक कहा, मां मैं आपको भगवान श्रीराम से पुन: मिलाउंगा।

भरत चले चित्रकूट राम को मनाने - माता कैकेयी द्वारा राजकुमार भरत को राज सिंहासन मागे जाने पर भरत जी काफी क्रोधित हुऐ और अकेले ही भगवान राम से मिलने जाने को तैयार हुऐ उन्होंने स्वयं घोषणा कर दी और अयोध्या की प्रजा से उन्हें राजा न बनाने की अपील की और भगवान राम से मिलने दल बल के साथ चित्रकूट के लिऐ निकल पड़े भरत - राम मिलन का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने श्रोताओं को आगे बताया कि भगवान राम से मुलाकात के पश्चात राजकुमार भरत व उनकी माता कैकेयी ने उन्हें वापस अयोध्या लौटने का आग्रह किया तब भगवान राम ने कहा कि पिता के आदेश का पालन करना मेरा कर्तव्य है मुझे 14 वर्ष के लिऐ वनवास जाना ही पड़ेगा पिता के स्वर्गवास हो जाने के बाद भरत आप पर अयोध्या के प्रजा की जिम्मेदारी है आप अयोध्या के राजा बनकर प्रजा की सेवा करें तब भरत ने अयोध्या का राजा बनने से साफ इंकार कर दिया । और नम आखों से बड़े भाई की चरण पादुका लेकर अयोध्या वापस लौट आये ।

बाद इसके भगवान राम माता सीता व लक्ष्मण जी वन की ओर प्रस्थान किये । वहीं आज के राम - सीता वनवास प्रसंग के दौरान छोटे - छोटे बच्चों ने भगवान राम माता सीता व लक्ष्मण जी का अनोखा किरदार निभाया जो श्रोताओं मे आकर्षक का केन्द्र बना रहा । इसी बीच कथा व्यास से सूरजपुर एसडीएम शिवानी जायसवाल व डॉ. आयुष जायसवाल सहित अन्य अतिथियों ने आशिर्वाद प्राप्त किया कथा विश्राम के बाद संध्या आरती हुई ततपश्चात भोग प्रसाद वितरित किये गए ।

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