अखिल विश्व के नारी सम्मान हेतू भगवान राम ने रावण से किया था धर्म युद्ध :- कथा व्यास पं. रविन्द्र दुबे....

Dec 10, 2024 - 22:31
Dec 10, 2024 - 22:43
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कैपिटल छत्तीसगढ़ न्यूज नेटवर्क...

संवाददाता : - दीपक गुप्ता...✍️

 सूरजपुर :- जिले के भैयाथान विकासखंड अंतर्गत ग्राम बड़सरा चल रहे 9 दिवसीय श्री राम कथा के आज आठवें दिन कथा व्यास ने लंका दहन , कुंभकर्ण , मेघनाथ व रावण वध व भगवान राम के अयोध्या में हुऐ राज्याभिषेक की कथा सुनाई । कथा व्यास ने श्रोताओं को बताया कि भगवान राम कि महाराज सुग्रीव से मित्रता के बाद उनकी सारी वानर सेना माता सीता का पता लगाने मे जुट गई जटायु के बताये अनुशार भगवान राम ने महाबली हनुमान जी को पहचान के लिए अपनी अंगुठी देकर माता सीता की खोज के लिऐ भेजा था हनुमानजी समेत लाखों वानरों का दल किष्किंधा से सीताजी की खोज में दक्षिण दिशा की ओर निकला था, तब वे समुद्र तट पर पहुंच गए थे. वहां एक पर्वत पर गिद्धराज जटायु के बड़े भाई, जिसका नाम संपाती था, ने वानरों को बताया कि, ‘लंका यहां से 100 योजन की दूरी पर है । उसने यह भी कहा था कि, ‘मेरी आंखें रावण के महल को प्रत्‍यक्ष देख पा रही हैं वहां तक पहुंचने के लिए किसी को पहले समुद्र पार करना होगा’ यह सुनकर वानर और रीछ समुद्र किनारे हताश होकर बैठ गए । युवराज अंगद समेत सभी वानर यूथपति समुद्र पार जाने के विषय में विचार करने लगे सबने क्रमश: अपनी-अपनी शक्ति-सामर्थ्‍य की बात की अंगद जा सकते हैं, पर लौटने में संदेह है । वैसे भी कपिदल के नेता को भेजा नहीं जा सकता था, क्योंकि वह रक्षणीय है  रीछ राज जामवंत बूढ़े हो चुके थे तब उनकी निगाहें हनुमानजी पर गईं । इस प्रकार वे हनुमानजी को उनकी शक्ति-सामर्थ्य का अहसास कराते हैं, उन्‍हें सुनकर हनुमान को अपनी खोई हुई शक्तियां याद आ गईं. उसके बाद हनुमान् जी लंका जाने के लिए उद्यत हो गए ।जामवंत की प्रेरणा से उन्हें अपने बल पर विश्वास हो गया और समुद्र लांघने के लिए अपने शरीर का विस्तार किया । अंतत: वायु मार्ग से उड़ते हुए हनुमानजी सीता की खोज में समुद्र पार कर रहे थे, तब सुरसा और सिंहिका नाम की दो राक्षसियों ने उन्हें रोका था, लेकिन वे रुके नहीं और अपने लक्ष्य यानी लंका तक पहुंच गए । कथा व्यास ने आगे बताया कि जब हनुमानजी माता सीता को ढूंढते - ढूंढते विभीषण के महल में चले जाते हैं। विभीषण के महल पर वे राम का चिह्न अंकित देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। वहां उनकी मुलाकात विभीषण से होती है। विभीषण उनसे उनका परिचय पूछते हैं और वे खुद को रघुनाथ का भक्त बताते हैं। हनुमान और विभीषण का लंबा संवाद होता है और हनुमानजी जान जाते हैं कि यह काम का व्यक्ति है। वे वि‍भीषण को श्रीराम से मिलाने का वचन दे देते हैं। लंका में घुसते ही उनका सामना लंकिनी और अन्य राक्षसों से हुआ जिनका वध करके वे आगे बढ़े। वे सीता माता की खोज करते हुए रावण के महल में भी घुस गए, जहां रावण सो रहा था। आगे वे खोज करते हुए अशोक वाटिका पहुंच गए। हनुमानजी के अशोक वाटिका में सीता माता से मुलाकात की और उन्हें राम की अंगूठी देकर उनके शोक का निवारण किया। सीता माता से आज्ञा पाकर हनुमानजी बाग में घुस गए और फल खाने लगे। उन्होंने अशोक वाटिका के बहुत से फल खाए और वृक्षों को तोड़ने लगे। वहां बहुत से राक्षस रखवाले थे। उनमें से कुछ को मार डाला और कुछ ने अपनी जान बचाकर रावण के समक्ष उपस्थित होकर उत्पाती वानर की खबर दी।

 फिर रावण ने अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा। वह असंख्य श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ लेकर हनुमानजी को मारने चला। उसे आते देखकर हनुमान जी ने एक वृक्ष हाथ में लेकर ललकारा और उन्होंने अक्षय कुमार सहित सभी को मारकर बड़े जोर से गर्जना की। पुत्र अक्षय का वध हो गया, यह सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने अपने बलवान पुत्र मेघनाद को भेजा। उससे कहा कि उस दुष्ट को मारना नहीं, उसे बांध लाना। उस बंदर को देखा जाए कि कहां का है। हनुमानजी ने देखा कि अबकी बार भयानक योद्धा आया है। मेघनाद तुरंत ही समझ गया कि यह कोई मामूली वानर नहीं है तो उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब हनुमानजी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूं तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी। तब ब्रह्मबाण से मूर्छित होकर हनुमानजी वृक्ष से नीचे गिर पड़े। जब मेघनाद देखा ने देखा कि हनुमानजी मूर्छित हो गए हैं, तब वह उनको नागपाश से बांधकर ले गया। बंधक हनुमान जी ने जाकर रावण की सभा देखी और फिर उन्होंने खुद ही अपनी पूंछ से अपने लिए एक आसन बना लिया और उस पर बैठ गए। रावण क्रोधित होकर कहता है- ' तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा? क्या तुझे मेरी शक्ति और महिमा के बारे में पता नहीं है?' तब हनुमान जी राम की महिमा का वर्णन करते हैं और उसे अपनी गलती मानकर राम की शरण में जाने की शिक्षा देते हैं। राम की महिमा सुनकर रावण क्रोधित होकर कहता है कि जिस पूंछ के बल पर यह बैठा है, उसकी इस पूंछ में आग लगा दी जाए। जब बिना पूंछ का यह बंदर अपने प्रभु के पास जाएगा तो प्रभु भी यहां आने की हिम्मत नहीं करेगा। पूंछ को जलते हुए देखकर हनुमानजी तुरंत ही बहुत छोटे रूप में हो गए। बंधन से निकलकर वे सोने की अटारियों पर जा चढ़े। फिर उन्होंने अपना विशालकाय रूप धारण किया और अट्टहास करते हुए रावण के महल को जलाने लगे। उनको देखकर लंकावासी भयभीत हो गए।

देखते ही देखते लंका जलने लगी और लंकावासी भयाक्रांत हो गए। हनुमानजी ने एक ही क्षण में सारा नगर जला डाला। एक विभीषण का घर नहीं जलाया। सारी लंका जलाने के बाद वे समुद्र में कूद पड़े और पुन: लौट आए। पूंछ बुझाकर फिर छोटा-सा रूप धारण कर हनुमानजी माता सीता के सामने हाथ जोड़कर जा खड़े हुए और उन्होंने उनकी चूड़ामणि निशानी ली और समुद्र लांघकर वे इस पार आए और उन्होंने वानरों को हर्षध्वनि सुनाई । हनुमानजी ने राम के समक्ष उपस्थित होकर कहा हे प्रभु माता सीता ने मुझे चूड़ामणि उतारकर दी। ने उसे लेकर भगवान राम ने हनुमान जी को हृदय से लगा लिया। यह प्रसंग सुनते ही श्रोता भाव विहोर हो गए ।

कथा व्यास ने आगे बताया कि महाराज सुग्रीव सहित सभी प्रमुख वानर दलों ने भगवान राम से कहा कि हे प्रभू आप समुद्र देव से लंका पहुचने के लिऐ रास्ता मांगें भगवान राम ने समुद्र तट पर ही अपना आसन लगाया और समुद्र देव के आराधना मे जुट गए पर समूद्र देव ने उनकी एक न सुनी काफी दिनों तक आराधना करने के बाद जब कोई सार्थक परिणाम नही निकला तब लक्ष्मण जी क्रोधित हो उठे और उन्होंने भगवान राम से कहा की भैया आपके रास्ता मांगने के बाद भी समुद्र ने हमे मार्ग नही दिया आप एक बाण से समुद्र के जल को सुखा दिजिए । सब्र की परीक्षा लेने पर भगवान राम भी बहुत नाराज हुऐ जैसे ही उन्होंने धनुष चलाने के लिऐ संधान किया वैसे ही हाथ जोड़कर समुद्र देव प्रकट हुए उन्होंने अपनी गलतियों के लिऐ क्षमा मांगते हुए भगवान राम से कहा कि प्रभू आप मेरी गलतियों की सजा समुद्र मे यह रहे सभी जीव को न दिजिए बल्कि आपके दल मे नल - नील नामक दो कारीगर हैं उनकी व पुरे बानर सेना की सहायता आप पुल का निर्माण करायें आपके नाम पत्थर समुद्र मे कभी नही डुबेंगे इस तरह 100 योजन समुद्र पर पुल बाँध भगवान राम - लक्ष्मण सहित महाराज सुग्रीव की पुरी सेना समुद्र पार कर लंका मे पहुंच गई । इसी बीच कथा व्यास ने श्रोताओं को बताया कि भगवान राम का बखान करने पर लंका के राजा रावण ने अपने छोटे भाई विभीषण को कुलद्रोही कहते हुऐ लंका से निकाल दिया था वे भी अपने मंत्रियों के साथ भगवान राम के शरण मे पहुंच गए थे । बाद इसके युद्ध की तैयारी की गई इस भीषण युद्ध में लंकापति रावण सहित भाई कुंभकर्ण पुत्र मेघनाद व कई महाबली राक्षस मारे गए  कथा व्यास ने बताया कि भगवान राम द्वारा विभीषण को दिये वचन अनुसार लंका का राजभार विभीषण को सौप दिया । इसी बीच माता सीता को अग्नि परीक्षा से भी गुजरना पड़ा बाद इसके देवताओं द्वारा भेजे गये पुष्पक विमान से भगवान राम ,माता सीता , लक्ष्मण जी , हनुमान जी सहित इस धर्म युद्ध मे भगवान राम का सहयोग कर रहे सभी लोग अयोध्या पहुंचे तथा भगवान राम का भब्य राज्यभिषेक हुआ । 

दियें के रौशनी से जगमगाया मंदिर परिसर :- ग्राम बड़सरा मे विगत 03 दिसंबर से शुरु हुऐ श्री राम कथा महोत्सव के आज आठवें दिन कथा परायण के साथ साथ माँ गायत्री की पूजा भी हुई जिसमे गायत्री परिवार के लोग सहित सभी ने अपनी सहभागिता निभाई । वहीं जय श्री राम आकार के बनाये गये दीप प्रज्वलित से पुरा मंदिर परिसर जगमगा उठा वहीं आज के कथा महोत्सव मे क्षेत्र के आसपास गाँव के लोग सहित स्थानीय लोगों कि भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी । कथा विश्राम के बाद संध्या आरती तथा कथा श्रोता व आगंतुकों के लिऐ प्रसाद व महा प्रसाद की भी व्यवस्था धर्म प्रमियों के सहयोग से समिति द्वारा की गई थी ।

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